एक रंग तेरा एक रंग मेरा ​

एक रंग तेरा एक रंग मेरा ​

Book/ Publication/ Education/Ek Rang Tera Ek Rang Mera​

Author: Dr. Purnima Bali

ISBN: 9788196120283

Date of Publication: 2023

Format: Paperback

पूर्णिमा बाली का कविता संग्रह में काफी सारी कविताएँ हैं, जिनमें उन्होंने रोज मरा और आसानी से समझने वाली भाषा में जीवन के कई सारे पहलुँओं को चुना है और कई सारी भावनाओं को व्यक्त किया है। यूँ कहें कि आम बोलने वाली भाषा का उपयोग किया है, जिसकी हिंदी और उर्दू शब्दों का मनमोहक मिश्रण है। 

पहली दो चार कविताएँ लंबी हैं जिन में सबसे पहले कविता में छुपी लड़की जोरदार शब्दों में ललकारते हुए कहते हैं कि मेरी राह में ना आना, पर दूसरी वह कविता में वो लाचार दिखती है, जो कि उसके शीर्ष में भी व्यक्त है। एक और कविता में महिलाएँ के प्रति अत्याचार के कई दृश्य हैं। एक कविता कारोना योद्धाओं के प्रति समर्पित है। उनके काम को सराहा है और उनके प्रति आभार भी व्यक्त किया है। ‘‘शुक्रिया‘‘ नामक कविता में खुले दिल से कृतज्ञता व्यक्त की है। 

इसके पश्चात कविताएं छोटी हो जाती हैं जिसमें बहुत सारी भावनाओं को दर्शाती हैंः कुछ तमन्नाएँ, खुशी और मायूसी, किसी चाहने वाले का प्रति प्यार, नाराजगी, आभार, इत्यादि। यही कहूँगा कि हल्की-फुल्की कवितायें हैं, अच्छी लगती हैं, और कभी-कभी कुछ गहरी बातें भी कह जाती हैं। कुछ एक पक्तियाँ तो उदाहरण करने लायक हैंः ‘‘कल को बेहतर करने चले थे और आज को सवारना भूल गए।” कुछ तो बेहद सुन्दर हैं जैसे “किसी का आधा अधूरा आना बहुत हुआ।” पूर्णिमा जी के कविताओं का ये छोटा सा प्रयास काफी उम्मीद भरा है। मुझे कविताएँ पढने में मजा आया। आशा है कि सभी पढ़ने वालों को भी अच्छा लगेगा। मेरी शुभकामनाएँ सदैव आपके साथ हैं।

पूर्णिमा बाली का कविता संग्रह में काफी सारी कविताएँ हैं, जिनमें उन्होंने रोज मरा और आसानी से समझने वाली भाषा में जीवन के कई सारे पहलुँओं को चुना है और कई सारी भावनाओं को व्यक्त किया है। यूँ कहें कि आम बोलने वाली भाषा का उपयोग किया है, जिसकी हिंदी और उर्दू शब्दों का मनमोहक मिश्रण है। 

पहली दो चार कविताएँ लंबी हैं जिन में सबसे पहले कविता में छुपी लड़की जोरदार शब्दों में ललकारते हुए कहते हैं कि मेरी राह में ना आना, पर दूसरी वह कविता में वो लाचार दिखती है, जो कि उसके शीर्ष में भी व्यक्त है। एक और कविता में महिलाएँ के प्रति अत्याचार के कई दृश्य हैं। एक कविता कारोना योद्धाओं के प्रति समर्पित है। उनके काम को सराहा है और उनके प्रति आभार भी व्यक्त किया है। ‘‘शुक्रिया‘‘ नामक कविता में खुले दिल से कृतज्ञता व्यक्त की है। 

इसके पश्चात कविताएं छोटी हो जाती हैं जिसमें बहुत सारी भावनाओं को दर्शाती हैंः कुछ तमन्नाएँ, खुशी और मायूसी, किसी चाहने वाले का प्रति प्यार, नाराजगी, आभार, इत्यादि। यही कहूँगा कि हल्की-फुल्की कवितायें हैं, अच्छी लगती हैं, और कभी-कभी कुछ गहरी बातें भी कह जाती हैं। कुछ एक पक्तियाँ तो उदाहरण करने लायक हैंः ‘‘कल को बेहतर करने चले थे और आज को सवारना भूल गए।” कुछ तो बेहद सुन्दर हैं जैसे “किसी का आधा अधूरा आना बहुत हुआ।” पूर्णिमा जी के कविताओं का ये छोटा सा प्रयास काफी उम्मीद भरा है। मुझे कविताएँ पढने में मजा आया। आशा है कि सभी पढ़ने वालों को भी अच्छा लगेगा। मेरी शुभकामनाएँ सदैव आपके साथ हैं।

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